सरस्वती वंदना!!
जो कुंद-इंदु-तुषार-हार समान अम्बर आवृता
जो वाद्य वीणा से सुमंडित श्वेत कमलासन-युता !!
जो ब्रम्हा-विष्णु-शिवादिसुर से वन्दिता नित पूजिता
सो शारदा सब सिद्धिदा हों सकल मुद मंगलयुता !! १ !!
जो शुक्ल-ब्रह्म-विचार सार समान वाणी संयुता !
जो भय-विनाशिनी बुद्धिदा सर्वाज्ञता दूरी करिता !!
जो पाप हारिणी पुण्यदा सर्वत्र सबमें व्यपिता !
सो हंस वाहिनी हंससा हों बुद्धिदा सुख संयुता !! २ !!
राखो शरण में शारदे , मुझ बाल कि विनती सुनो
सिद्धासने ! कमलासने ! हम सुमति के साधक सुनो !!
संवर्धिनी बुद्धि पुनः नाशिनी कुबुद्धि कि सदा
पालिनी सुसेवक जननी हे अपनाती अज्ञों को सदा !! ३ !!
कल्याण करदो मातु तुम सक्षिष्टता अविलम्ब हो !
अघहर तमोहर असदहर हे अम्ब अब अवलंब दे !! ॐ !!
जो कुंद-इंदु-तुषार-हार समान अम्बर आवृता
जो वाद्य वीणा से सुमंडित श्वेत कमलासन-युता !!
जो ब्रम्हा-विष्णु-शिवादिसुर से वन्दिता नित पूजिता
सो शारदा सब सिद्धिदा हों सकल मुद मंगलयुता !! १ !!
जो शुक्ल-ब्रह्म-विचार सार समान वाणी संयुता !
जो भय-विनाशिनी बुद्धिदा सर्वाज्ञता दूरी करिता !!
जो पाप हारिणी पुण्यदा सर्वत्र सबमें व्यपिता !
सो हंस वाहिनी हंससा हों बुद्धिदा सुख संयुता !! २ !!
राखो शरण में शारदे , मुझ बाल कि विनती सुनो
सिद्धासने ! कमलासने ! हम सुमति के साधक सुनो !!
संवर्धिनी बुद्धि पुनः नाशिनी कुबुद्धि कि सदा
पालिनी सुसेवक जननी हे अपनाती अज्ञों को सदा !! ३ !!
कल्याण करदो मातु तुम सक्षिष्टता अविलम्ब हो !
अघहर तमोहर असदहर हे अम्ब अब अवलंब दे !! ॐ !!
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