समर : भारत-पाक युद्ध के सन्दर्भ में
छिड़ रहा समर है अति दुरंत हो गया पाक हमलावर है
देता है चीन उधर धमकी स्थिति अत्यंत भयंकर है
चेत करो अब चेत करो
रिपु सीमा पर ललकार रहा
जाग पड़ो अब जाग पड़ो
भीषण भुजंग फुफकार रहा
रे आगे बढ़ के ललकारो
शत्रु का काम तमाम करो
उसकी बेरहमी के बदले
उसकी मर्यादा भंग करो
दौड़ो दौड़ो जल्दी दौड़ो
अब नही बिलम्ब सुहाता है
रावलपिंडी के शासन का
अब पाया शीघ्र उखाड़ता है
कर चूका बहुत है अनाचार
वह दुष्ट अयूब कहा भगा
क्या दुर्योधन की नाई वह
छिपने को सरवर में भागा !
ओ भीम उठाओ शीघ्र गदा
ओ अर्जुन ललकारो उसको
ओ कृष्णा शीघ्र दौड़ो देखो
माता कुंती का कष्ट हरो
उस दुर्योधन अयूबी का
संहार शीघ्र कर दो भैया
फहरा दो राष्ट्र तिरंगा को
आशीष देगी भारत मैया
ओ राम उठाओ धनुष बाण
ओ लखन धरो तुम शेषबाण
ओ जम्बुवान ओ हनुमान
पर्वत पहाड़ को लो उखाड़
पाक-चीन संयुक्त चुनौती
लंका शीघ्र जलाना है
हिमगिरी के शिखरों पे चढ़ा
अपना झंडा फहराना है
बढ़ना है केवल बढ़ना है
लड़ना है केवल लड़ना है
चढ़कर अब गरुंडध्वज रथ पर
जय पाकर ही रहना है !
ओ पुरुषो कुम्भज बन जाओ
नारियों सुकन्या शीघ्र बनो !
रिपुसेना समुन्दर को पीकर
हे लाल बहादुर लाल बनो !
इति !!
लेखक : श्री राम सिंघासन पाठक
छिड़ रहा समर है अति दुरंत हो गया पाक हमलावर है
देता है चीन उधर धमकी स्थिति अत्यंत भयंकर है
चेत करो अब चेत करो
रिपु सीमा पर ललकार रहा
जाग पड़ो अब जाग पड़ो
भीषण भुजंग फुफकार रहा
रे आगे बढ़ के ललकारो
शत्रु का काम तमाम करो
उसकी बेरहमी के बदले
उसकी मर्यादा भंग करो
दौड़ो दौड़ो जल्दी दौड़ो
अब नही बिलम्ब सुहाता है
रावलपिंडी के शासन का
अब पाया शीघ्र उखाड़ता है
कर चूका बहुत है अनाचार
वह दुष्ट अयूब कहा भगा
क्या दुर्योधन की नाई वह
छिपने को सरवर में भागा !
ओ भीम उठाओ शीघ्र गदा
ओ अर्जुन ललकारो उसको
ओ कृष्णा शीघ्र दौड़ो देखो
माता कुंती का कष्ट हरो
उस दुर्योधन अयूबी का
संहार शीघ्र कर दो भैया
फहरा दो राष्ट्र तिरंगा को
आशीष देगी भारत मैया
ओ राम उठाओ धनुष बाण
ओ लखन धरो तुम शेषबाण
ओ जम्बुवान ओ हनुमान
पर्वत पहाड़ को लो उखाड़
पाक-चीन संयुक्त चुनौती
लंका शीघ्र जलाना है
हिमगिरी के शिखरों पे चढ़ा
अपना झंडा फहराना है
बढ़ना है केवल बढ़ना है
लड़ना है केवल लड़ना है
चढ़कर अब गरुंडध्वज रथ पर
जय पाकर ही रहना है !
ओ पुरुषो कुम्भज बन जाओ
नारियों सुकन्या शीघ्र बनो !
रिपुसेना समुन्दर को पीकर
हे लाल बहादुर लाल बनो !
इति !!
लेखक : श्री राम सिंघासन पाठक
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