शुभकामनायें.

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Saturday 24 September 2016

आरक्षण एक असाध्य रोग - समीक्षात्मक चिंतन ।। Aarakshan Ek Asadhya Rog - Chintan.

आरक्षण एक असाध्य रोग - समीक्षात्मक चिंतन ।।

पण्डित श्री राम सिंघासन पाठक ।।

 प्रश्न  उठता है ,
 आरक्षण क्यों ? किसके लिए ? और कब तक ? लगता है विदेशी हुक्मरानों ने जब ऐसा महसूस किया होगा  कि  भारतीय अब बिना आज़ादी के मानने वाले नहीं हैं, अब किसी भय या भुलावे में आकर अपनी मांग से विचलित होने वाले नहीं हैं, तब उन लोगों  ने भारत को तोड़ने के तहत आरक्षण और विभाजन के लिए दलितों और मुसलमानों को उकसाया होगा ।।

मांगे जोर पकड़ने लगी, बातें यहाँ तक बढ़ गयी कि मात्र १० करोड से भी  कम मुसलमानों की आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले जिन्ना प्रधानमंत्री पद से कम पर राज़ी ही नहीं हो रहे थे । इस प्रकार अंग्रेजी हुक्मरानों ने जाते जाते  भी देश को जातीयता और साम्प्रदायिकता की आग में इस प्रकार झोंक दिया कि वह आज भी बुरी तरह जल रहा है ।।

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख , ईसाई - आपस में हैं भाई भाई का नारा सिर्फ कहने और सुनने को ही  रह गया है । विवश होकर पाकिस्तान का बंटवारा तो करना ही पड़ा वो भी आधा अधूरा ही । जब  मुसलमान  हिंदुस्तान में और हिन्दू पाकिस्तान में रह ही गए तो पाकिस्तान के बंटवारे से क्या 
लाभ ?

मैं  तमाम राजनीतिक पुरोधाओं से पूछना चाहता हूँ, कि इस बंटवारे का क्या औचित्य था ? जिन सिक्खों ने हिंदुत्व  की  रक्षा के लिए  "पञ्च ककार " जैसे कठिन व्रत को धारण किया  था ,कितनी कुर्बानियां दी  थी आज वे भी अपने आप को हिन्दू धर्म से भिन्न समझने और अलग राज्य खालिस्तान कि मांग करने लगे ।।

अब आप विचार कीजिये आरक्षण पर, 
क्या आरक्षण भारत के सर्वनाश के लिए कैंसर या उससे भी बढकर कोई ऐसा असाध्य रोग नहीं जो जीव  की  मृत्यु के अलावे कुछ और शर्त पर न माने ? भगवान ऐसे लोगों को थोड़ी तो सद्बुद्धि दें ताकि मानव हित के लिये कुछ तो करें ।।क्या आरक्षण के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था जिससे दलितों और पिछडों के जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार लाया जा सके ? क्या हरिजनों में सबके सब गरीब ही थे  और सवर्णों में सबके सब अमीर ही ? क्या अमीर -गरीब हर समय हर जाति, धर्म और संप्रदाय में नहीं रहे हैं और नही रहेंगे ? क्या अमीरी-गरीबी या अन्य विषमतायें अपने पूर्व जन्मों  के कर्मों का फल नहीं ? क्या आपकी  पांचो  ऊँगलियां बराबर  हैं ? क्या आपके सभी  पुत्र एक समान रूप ,रंग एवं योग्यता रखते  हैं ? क्या कर्माकर्म  का कोई महत्व नही ? मेरा हर वर्ण , जाति , धर्म और संप्रदाय के समझदार एवं राष्ट्रवादी विचारधारा वाले नेताओं पदाधिकारियों तथा आम जनता से आग्रह है कि वे इस जहरीली व्यवस्था पर  गंभीरता से विचार करें ! यदि आरक्षण से ही समानता  लाई  जा सकती हो तो पहले वे अपने परिवार के सभी सदस्यों में एकरूपता क्यों नहीं ला देते !
माना आप की यह धारणा शत प्रतिशत सही है कि आरक्षण ही एक ऐसी व्यवस्था है जिससे देश वासिओं के जीवन स्तर में आमूल सुधार लाया जा सकता है तो क्या आप यह बताने का प्रयास कर सकते  हैं  कि आपके हिंदुस्तान में कितनी जातियां है और संख्या कितनी है ? शत प्रतिशत आरक्षण देकर भी क्या आप सभी जातियों को आरक्षण का लाभ दे सकते हैं ? समानता ला सकते हैं ! नहीं नहीं नहीं  ! कभी नहीं  ! इससे केवल अंग्रेजों  के उद्देश्य की  पूर्ति कर सकते हैं ! फूट डालो राज करो ! जनता को बेवकूफ बनाओ वाली नीति आंशिक रूप से सफल हो सकती है ! यदि सफल हो भी जाये तो उन सवर्णों का क्या होगा ? क्या वो इस देश के नागरिक नहीं हैं? क्या उन्हें जीने का अधिकार नही है ? क्या उन्हें आजीवन ३२ दांतों के बीच में जीभ  की  तरह जीने को विवश रहना पड़ेगा ? क्या यही संविधान का समता मूलक अधिकार है ? जिन सवर्णों ने  आज़ादी की  लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था  ! यदि अपनी मानसिक संकीर्णता को छोड़कर देश के भाग्य विधाता लोग निष्पक्ष विचार करें  कि   आज़ादी की  लड़ाई यूँ तो सभी जातियों एवं सम्प्रदायों के लोगों ने लड़ी थी जो शैक्षिक एवं आर्थिक दृष्टि से  संपन्न  थे !उनमें अधिकांश लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से  ब्रिटिश शासन में साझेदार थे ! ज़मींदारों ने ही "जमींदारी प्रथा का नाश हो" का नारा बुलंद किया था !
अंग्रेजी हुकूमत में भी जिन्हें सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ प्राप्त थी वे या उनकी संतानों ने ही पहले आज़ादी का नारा बुलंद किया ! जेल यातनायें सही !दर दर की  ठोकरे खायीं ! अंगरेजी  हुक्मरानों के कोड़े की  मार सही !क्या इसी लिए  कि  आज़ादी के बाद भारत पुनः अंग्रेजी विचारधारा का पोषक बनकर आपस में लडेगा ? छिन्न भिन्न होगा ! अस्तु ! 

तत्कालीन संविधान निर्माताओं ने कुछ प्रतिशत एवं सीमित समय के लिये आरक्षण की व्यस्था की थी जो एक प्रकार से प्रशंसनीय नहीं तो निंदनीय भी नहीं थी ,किन्तु उसका नाजायज लाभ उठा कर आरक्षण का प्रतिशत और समय सीमा सुरसा के मुख की तरह बढाई जाने लगी ! एकपक्षीय विचारधारा वाले राजनीतिज्ञों ने वोटबैंक की राजनीति से न्याय-व्यवस्था  को दूषित कर ही दिया ! आरक्षण को स्थाई कर के सम्पूर्ण भारत को गृहयुद्ध के कगार पर खड़ा कर दिया ! आज देश जातीयता की आग में बुरी तरह जल रहा है ! सभी जाति एवं सम्प्रदायों के लोग अपने लिए आरक्षण   की  माँग करते जा रहे हैं !
है किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी के पास इस रोग की दवा  ? है किसी की  हस्ती जो इसका विरोध करे और यह कहे कि  भाइयों , बाबा साहेब अम्बेदकर  द्वारा निर्मित संविधान की  समय सीमा बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी है!अब  उसके विस्तार की  वकालत कर क्या आप  तत्कालीन संविधान निर्माताओं का अपमान नहीं कर रहे हैं ? उनके स्वर्णीम सपनों  को दु:स्वप्न में  परिवर्तित नहीं कर रहे हैं ? भारत की भोली-भाली जनता को ठग नहीं रहे हैं ?धोखा नही दे रहे हैं ? 

आइये और आरक्षण के असाध्य रोग से देश को बचाइए ! 
भारत के भविष्य को  संवारिये !
 इसे भूमि का स्वर्ग बनाइये ! 
विदेशियों के फूट डालो और राज्य करो की नीति को विफल बनाइये ! 

तमाम राजनीतिज्ञों , विधायकों , पार्षदों सांसदों , प्रधान मंत्री सहित मुख्यमंत्रियों, विचारकों एवं देशप्रेमियों तथा भोली-भाली भारतीय जनता से मेरा आग्रह है कि वे समवेत स्वर से आरक्षण का विरोध करें एक ऐसी नीति का निर्धारण हो जिसमे नागरिकों को चरित्रवान , विद्वान , और राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत होने का प्रावधान हो ! विभिन्न संस्थाओं में नियुक्ति और प्रोन्नति का आधार योग्यता हो ,जातीयता नही ! शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के पूर्व छात्रों एवं अभिभावकों की  बौद्धिक एवं वैचारिक जांच ली जाये ! आर्थिक दृष्टि से कमजोर लोगों को हर क्षेत्र में आर्थिक सहायता का प्रावधान हो ! राजनीति में प्रवेश या चुनाव की  प्रक्रिया में आमूल परिवर्तन हो ! निर्वाचन आयोग ,संविधान संशोधन के माध्यम से बहुपार्टीयों की  परिपाटी समाप्त करे ! नौकरी की तरह चुनाव लड़ने वालों की  भी आयु सीमा , योग्यता तथा राष्ट्रीयता को आधार बनाया जाये ! अनिष्ट तत्वों एवं बाहुबलियों  का  राजनीति में प्रवेश निषेध हो !दंड-प्रक्रिया सबके लिए समान हो !न्याय पैसे पर न बिके ! पेंशन और वेतन नीति सर्वत्र और सबके लिए समान हो !

 अंत में एक बार फिर देश के दुश्मन आरक्षण  को सदा सर्वदा के लिए देश से भगाने के लिए हमलोग दृढ़ संकल्प लें ! 



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मित्रों, आप सभी भगवान के भक्तों को धनतेरस एवं दिपावली की हार्दिक शुभकामनायें । दिपावली में माता महालक्ष्मी का आशीर्वाद आप सभी के जीवन को हर प्रकार की खुशियों से भर दे ।।