कविता : एकता
आओ फिर से नए सिरे से
पुनः विचार किया जाये
भेद भाव सब छोड़ छाड़ कर
हिल-मिल यहाँ रहा जाये
ऐसा करें प्रयास की सारा
कल्मष-तम हट जाये
ऐसा करे प्रयत्न की
भारत भूमि स्वर्ग बन जाये
नफरत-घृणा द्वेष ईर्ष्या से
रिक्त रखे वसुधा को
काम क्रोध लोभादि मोह से
दूर-रखे सबहीं को
ऐसा करे प्रयत्न की निश्छल
जन समाज हो जाये
ऐसा करें ...
जात-पात का भेद मिटा
दानवता दूर भगाएं
आतंकवाद अपहरणवाद का
नाम निशान मिटायें
जन समाज को अभयदान
दें अमरत्व सदा सरसायें
ऐसा करें प्रयत्न की नया
वर्ष अब मंगलमय हो जाये
शासक शासित संबंधो को
इस भू समान मिटायें
राम राज्य का स्वप्न सभी
साकार त्वरित दिखलायें
हेड टेल का भेद मिटा
धरती को स्वर्ग बनायें
ऐसा करें ...
नही किसी को छुट बहुत हो
नही किसी पर भार बहुत
सत्कर्तार: हों सम्मानित
सद्धर्मी सदा पुरस्कृत
कुत्सित तत्वों का विनाश
सदवृतियों से संसार सजाएँ !!
ऐसा करे ...
लेखक : राम सिंघासन पाठक
आओ फिर से नए सिरे से
पुनः विचार किया जाये
भेद भाव सब छोड़ छाड़ कर
हिल-मिल यहाँ रहा जाये
ऐसा करें प्रयास की सारा
कल्मष-तम हट जाये
ऐसा करे प्रयत्न की
भारत भूमि स्वर्ग बन जाये
नफरत-घृणा द्वेष ईर्ष्या से
रिक्त रखे वसुधा को
काम क्रोध लोभादि मोह से
दूर-रखे सबहीं को
ऐसा करे प्रयत्न की निश्छल
जन समाज हो जाये
ऐसा करें ...
जात-पात का भेद मिटा
दानवता दूर भगाएं
आतंकवाद अपहरणवाद का
नाम निशान मिटायें
जन समाज को अभयदान
दें अमरत्व सदा सरसायें
ऐसा करें प्रयत्न की नया
वर्ष अब मंगलमय हो जाये
शासक शासित संबंधो को
इस भू समान मिटायें
राम राज्य का स्वप्न सभी
साकार त्वरित दिखलायें
हेड टेल का भेद मिटा
धरती को स्वर्ग बनायें
ऐसा करें ...
नही किसी को छुट बहुत हो
नही किसी पर भार बहुत
सत्कर्तार: हों सम्मानित
सद्धर्मी सदा पुरस्कृत
कुत्सित तत्वों का विनाश
सदवृतियों से संसार सजाएँ !!
ऐसा करे ...
लेखक : राम सिंघासन पाठक
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